Wednesday, July 16, 2025

हिंदू परिवार के अस्तित्व पर खतरा : राजसिंह अधिवक्ता अटाली

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 राज सिंह अधिवक्ता अटाली। छाया : नितिन बंसल
बल्लभगढ़, नितिन बंसल (विशेष संपादक)। परिवार, किसी भी समाज की मूलभूत इकाई है, जो सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और सामाजिक स्थिरता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव, व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अत्यधिक जोर और तेजी से हो रहे सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों ने वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया में, पारंपरिक परिवार प्रणाली को चुनौती दी है। इन बदलावों को अक्सर समाज के लिए विघटनकारी माना जाता है, जिससे गंभीर सामाजिक और सांस्कृतिक चिंताएँ पैदा होती हैं।
पश्चिमी दुनिया में परिवार का विघटन
उन्होंने कहा कि पश्चिमी समाजों में पारंपरिक परिवार प्रणाली के पतन को कई कारक प्रभावित कर रहे हैं, विवाह संस्था में गिरावट: लोग देर से शादी कर रहे हैं या बिल्कुल भी नहीं, करियर और व्यक्तिगत लक्ष्यों को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।वैकल्पिक संबंध मॉडल: समलैंगिकता, लिव-इन रिलेशनशिप और एकल-पालन जैसी अवधारणाएँ आम हो गई हैं। आलोचकों का मानना है कि ये पारंपरिक पारिवारिक संरचना को कमजोर करती हैं। पितृत्व की अनिश्चितता: अवैध संबंधों के कारण ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है जिन्हें अपने जैविक पिता के बारे में जानकारी नहीं होती, जिससे पहचान और सामाजिक समर्थन प्रणालियों में जटिलताएँ आती हैं। वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा: पारिवारिक देखभाल संरचनाओं के टूटने से बुजुर्गों को वृद्धाश्रमों में रहना पड़ रहा है, जो कभी परिवार का अभिन्न अंग थे। सामाजिक अस्थिरता और राजनीतिक प्रतिक्रिया: परिवार के विघटन को सामाजिक अस्थिरता से जोड़ा जाता है, जिससे कुछ पश्चिमी देशों में 'फैमिली फस्र्ट' जैसे राजनीतिक आंदोलन उभरे हैं। पश्चिमी लेखक डेविड सेलबॉर्न ने अपनी पुस्तक "द लूज़िंग बैटल विद इस्लाम" में इस बात पर जोर दिया है कि पश्चिमी दुनिया इस्लाम की तुलना में कमजोर पड़ रही है, जिसका एक प्रमुख कारण इस्लाम की मजबूत पारिवारिक प्रणाली है। उनका तर्क है कि एक सुदृढ़ पारिवारिक संरचना न केवल सामाजिक स्थिरता देती है बल्कि जनसंख्या वृद्धि और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण है।
भारत में हिंदू परिवार परंपरा पर प्रभाव
भारत, जो अपनी संयुक्त परिवार प्रणाली के लिए विख्यात है, अब पश्चिमी प्रवृत्तियों के समान परिवर्तनों का सामना कर रहा है। चिंता जताई जा रही है कि हिंदू परिवार परंपरा भी पतन की ओर अग्रसर है: * संयुक्त से नाभिकीय परिवार: शहरीकरण और पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से संयुक्त परिवार टूटकर छोटे नाभिकीय परिवारों में बदल रहे हैं। * रक्त संबंधों का क्षरण: "रक्त के पांच रिश्ते" - ताऊ, चाचा, बुआ, मामा, और मौसी - जैसे महत्वपूर्ण संबंध धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं, जिससे भविष्य की पीढिय़ों में अकेलापन बढ़ सकता है। * सांस्कृतिक और सभ्यतागत खतरा: पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों का यह क्षरण न केवल व्यक्तिगत अलगाव पैदा करेगा बल्कि हिंदू सभ्यता और इसकी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी खतरा है, जिससे सामाजिक सामंजस्य कमजोर हो सकता है।
निष्कर्ष
पश्चिमी दुनिया में परिवार प्रणाली का कथित पतन एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है, जिसके दूरगामी परिणाम हैं। भारत में हिंदू परिवार परंपरा के क्षरण की चिंताएं भी उतनी ही गंभीर हैं, जो सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकजुटता को खतरा दे रही हैं।
इस महत्वपूर्ण विषय पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। परिवार को बचाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक जागरूकता दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। हमें परिवारों के भीतर और व्यापक समाज में इन मुद्दों पर चर्चा करनी होगी। अपनी सभ्यता, संस्कारों और आने वाली पीढिय़ों को बचाने के लिए पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों के महत्व को फिर से स्थापित करना और उन्हें बढ़ावा देना आवश्यक है। यदि परिवार की इकाई को बचाया नहीं गया, तो समाज और सभ्यता का दीर्घकालिक अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

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