Saturday, March 29, 2025

विदेश में रोक के बावजूद फरीदाबाद के बल्लभगढ़ की कंपनी में एस्बेस्टस और ब्ल्यूफाइबर का धड़ल्ले से हो रहा इस्तेमाल अधिकारी मोन

 कंपनी के बीमार एम्पलाई ए के गुप्ता। छाया : नितिन बंसल


बल्लभगढ़, नितिन बंसल (संपादक)। कई देशों में एस्बेस्टस और ब्ल्यूफाइबरजैसे पदार्थ का इस्तेमाल देश ने बंद कर दिया है क्योंकि उसे आमजन को काफी नुकसान होता है लेकिन भारत के फरीदाबाद जिले में Hil कंपनी है जो अपने उत्पादों को बनाने में एस्बेस्टस और ब्ल्यूफाइबरका इस्तेमाल धड़ले से कर रहे हैं और अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं कंपनी के hr से पंजाब केसरी के संवाददाता बात की तो उन्होंने कोई भी जवाब lनहीं दिया और अपना पल्ला झाड़ते हुए दिखाई दिए ऐसे ही एक कंपनी बल्लभगढ़ के सेक्टर 25 में स्थित है जहां पर सीमेंट की चादर चारमीनार के नाम से बनाने वाली कंपनी जिसमें एस्बेस्टस और ब्ल्यूफाइबर का इस्तेमाल होता है जो कि दुनिया की बाकी देशों में बेन हो गया है इसके बावजूद फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में स्थापित कई वर्षों की पुरानी कंपनी हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड जोकि सेक्टर 25 में स्थित है, इसमें एस्बेस्टस फाइबर का काफी उपयोग होता है जो कि यहां पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। इसके बावजूद भी कंपनी बिना सेफ्टी इक्विपमेंट के कर्मचारियों से काम लेती है और अगर कर्मचारी उस एस्बेस्टस फाइबर का शिकार हो जाता है, कंपनी प्रबंधन द्वारा उसका कोई ध्यान नहीं दिया जाता और न ही उसका इलाज करवाया जाता। कंपनी के एस्बेस्टस से पीडि़त एक मामला पुराने कर्मचारी के साथ हुआ है। दरअसल बल्लभगढ़ के सेक्टर-55 में रहने वाले हैदराबाद इंडस्ट्रीज के पुराने कर्मचारी अशोक कुमार गुप्ता जिन्होंने कंपनी में लगभग 37 साल अपनी सेवाएं दी और इस एस्बेस्टस, ब्ल्यूफाइबर जैसे खतरनाक पदार्थ के बीच रहकर काम किया। उनकी यह सेवाएं 1969 से 2006 तक यानि 37 साल चली। इसके बाद वह रिटायर हो गए वर्ष 2022 में सास लेने में दिक्कत आए फिर उनका हॉस्पिटल में टेस्ट करवाया तो पता चला एस्बेस्टस फाइबर से उनके फेफड़े खराब हो गए जब उनको सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो डॉक्टर ने ild घोषित कर दिया है। इस समय उनके फेफड़े भी खराब हो चुके है। उनके सुपुत्र रोहित गुप्ता ने बताया कि सुप्रीम कोट की गाइडलाइन के अनुसार इस तरह की कंपनियां जो की खतरनाक एस्बेस्टस फाइबर का इस्तेमाल करती है तो वहां कार्यरत कर्मचारियों का हर साल चेकअप और उपचार करवाना अनिवार्य होता है ताकि यह पता लग जाए कि वह कर्मचारी किसी एस्बेस्टस से पीडि़त तो नहीं है। इस मामले में हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड इस कंपनी द्वारा अपने एक रिटायर कर्मचारी का स्वास्थ्य जांच करवाई नहीं जब उनको लगभग 16 साल बाद पता लगा कि वह बीमारी से पीडि़त है और यह बीमारी उन्हें एस्बेस्टस, ब्ल्यूफाइबर के कारण हुए है जो कि इस कंपनी में इस्तेमाल होता है। अगर कंपनी ने समय रहते मेडिकल चेकअप करवाया होता तो शायद यह बीमारी इतनी नहीं बढ़ती और उनका इलाज भी समय रहते हो जाता। उनके सुपुत्र रोहित बंसल ने कंपनी के एचआर और एमडी और उनके पैनल पर जो डॉक्टर बी सी राव हैं सभी को मेल की है लेकिन उनकी ओर से कोई भी संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं आ रहा केवल घुमाया जा रहा है। कंपनी द्वारा इनके पिताजी को किसी भी तरह की कोई भी सहायता नहीं दी गई और ना ही उनकी इलाज में कोई मदद की जा रही है बल्कि अपना पलड़ा झाड़ा जा रहा है। रोहित गुप्ता जब हमारे पास आए तो उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी जैसे सैकड़ो कई कर्मचारियों को इस बीमारी का पीडि़त हुई है जिनका कंपनी द्वारा कोई भी इलाज नहीं करवाया गया है और ना ही कोई चेकअप करवाती है। कंपनी के एम्पलाई ए के गुप्ता जोकि इस समस्या से पीडि़त है और उनके सुपुत्र जो की काफी गरीब अवस्था में है इस बीमारी का इलाज करवा पाने में असमर्थ हैं। उन्होंने कर्ज लेकर अब तक लगभग 25 लाख रुपए अपने पिता के इलाज में लगा चुके हैं। इस बीमारी का असल में जिम्मेवार हैदराबाद इंडस्ट्रीज कंपनी है। पीडि़त व्यक्ति के परिवार को इंतजार है। कंपनी उनका इलाज का मुआवजा दे और आगे जो भी खर्चा अस्पताल में हो रहा है वह भी उनको दिया जाए ताकि इस कंपनी के 37 वर्ष से कार्य कर्मचारी की जान बचाई जा सके और पीडि़त कर्मचारियों के परिजनों द्वारा प्राइवेट कंपनी, फैक्ट्री के मुख्य निरीक्षक, प्रमाणन सर्जन, जिला मजिस्ट्रेट और चंडीगढ़ में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को ज्ञापन देने के बावजूद, एस्बेस्टोसिस से पीडि़त पूर्व कर्मचारी के मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कंपनी कर्मचारी के उपचार की जिम्मेदारी लेने में विफल रही है और उसने कभी भी सेवानिवृत्ति के बाद चिकित्सा जांच नहीं कराई है। अधिकारी चुप रहते हैं, ऐसा लगता है कि वे अज्ञात कारणों से कंपनी का पक्ष ले रहे हैं, जिससे प्रभावित पूर्व कर्मचारी को बिना किसी सहायता या न्याय के छोड़ दिया गया है। कोई अन्य उपाय न होने के कारण, अब न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाना ही एकमात्र विकल्प प्रतीत होता है।

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